History of Varanasi and its importance

                                                               वाराणसी का इतिहास और उसका महत्व



बनारस की धरती हिंदुओं की सबसे पवित्र, और धार्मिक नगरी के रूप में जाना जाती है। बनारस नाम अपने आप में इतना प्रसिद्ध है,तो इस शहर का आधिकारिक नाम वाराणसी क्यों है ?

बनारस और हिंदू धर्म हमारे सभी प्रमुख धार्मिक ग्रंथों जैसे वेद, पुराण, उपनिषद, सूत्र और महाभारत आदि में बनारस का वर्णन काशी नाम से किया गया है। 

स्कंदपुराण के काशी खंड में लगभग 15,000 श्लोकों में काशी के विभिन्न तीर्थों का वर्णन किया गया है काशी को लेकर ऐसी मान्यता है की इस नगरी को भगवान शिव ने बसाया था। देवी पार्वती से विवाह करने के बाद भगवान शिव देवी पार्वती के साथ काशी आए और कहा कि वह इस जगह को कभी नहीं छोड़ेंगे। तब से काशी को शिव की नगरी कहा जाने लगा। इस शहर की हर गली-मोहल्ले में आपको भगवान शिव की गहरी छाया देखने को मिलेगी। वैसे तो इस शहर में शिव के अनगिनत मंदिर हैं। लेकिन अगर सबसे प्रसिद्ध मंदिर की बात करें तो वह है काशी विश्वनाथ मंदिर।


इसके अलावा 12वीं शताब्दी में बना कर्दमेश्वर महादेव मंदिर और गोपुरम शैली में बना केदारेश्वर मंदिर भी काफी प्रसिद्ध हैं। इस शहर में शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृतियां मौजूद हैं। 

श्रावण मास में यहां लोगों की काफी भीड़ होती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने काशी में उन भक्तों को 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन कराए थे जो दर्शन करने के लिए अलग-अलग जगहों पर जाने में असमर्थ हैं।

शिव के अलावा यहां अन्य देवी-देवताओं के भी काफी प्रसिद्ध मंदिर हैं। जैसे संकट मोचन हनुमान मंदिर, जिसकी स्थापना महाकवि तुलसी दास ने की थी। 

यहां देवी दुर्गा के एक रूप कुष्मांडा देवी का भी काफी पुराना मंदिर है। इसके अलावा विश्वनाथ मंदिर के पास माता अन्नपूर्णा का भी मंदिर है। यह मंदिर दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान को प्रसाद चढ़ाने से पहले भक्तों में प्रसाद बांटा जाता है भारत में उनका केवल एक ही मंदिर है जो राजस्थान के पुष्कर में है लेकिन यह सच नहीं है। बनारस में ब्रह्मा का मंदिर है और उनका पुष्कर तालाब भी है। हिंदू धर्म में बनारस का महत्व

लेकिन अगर बौद्ध धर्म में इस जगह की महत्ता की बात करें तो वाराणसी से करीब 13 किलोमीटर दूर सरनाट है जहां गौतम बुद्ध ने पहली बार धर्म की शिक्षा दी थी। 

प्राचीन समय में ये जगह अपनी मूर्तिकला कला के लिए भी काफी प्रसिद्ध थी। दुनियाभर में बौद्ध धर्म को मानने वाले कई देशों ने यहां अपने बौद्ध मंदिर बनवाए हैं। बनारस जैन धर्म का भी एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। 


जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं जिनमें से 4 तीर्थंकरों का जन्म वाराणसी में हुआ था।

तीर्थंकरों की जन्मस्थली होने के अलावा बनारस में कई प्राचीन जैन मंदिर भी हैं। ये सब था उन धर्मों के बारे में जिनका बनारस से गहरा नाता है।

बनारस को वाराणसी और काशी क्यों बोलते हैं

इतिहासकारों के अनुसार वाराणसी का प्राचीन नाम काशी है। करीब 3000 सालों से ये शहर इसी नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि प्राचीन काल में इसे काशी कहा जा सकता है। लेकिन काशी का नाम ये भी है। काशीगढ़ चमकती नगरी के पास रहा होगा, बागवान शेव की नगरी जगमगाती रही होगी, जिस कारण इसे काशी यानी रोशनी की नगरी कहा गया और यहीं से इसका नाम काशी पड़ा। बनारस नाम मुगलकालीन नाम है। 

जब मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहां हमला किया तो वो इस शहर की वास्तुकला से काफी प्रभावित हुए। उस समय के मुस्लिम कवियों या शायरों ने जब इस जगह की खूबसूरती, समृद्धि और खुशहाली देखी तो उन्होंने इस शहर को ये कहकर परिभाषित किया कि ये रस या शरबत से सराबोर शहर है, जो अपने आप बनता है यानी जूस से बना है। 

जब इसका प्रयोग बोलचाल की भाषा में होने लगा तो वहीं से इसका नाम बनारस पड़ा। वर्ष 1956 ई. तक यह शहर बनारस के नाम से ही जाना जाता था। इसके बाद इसका नाम बदल दिया गया और वरुणा और अस्सी दो नदियों के बीच स्थित होने के कारण इस शहर का नाम बदलकर वाराणसी कर दिया गया, जो वर्तमान में इस शहर का आधिकारिक नाम है, हालांकि आज भी बनारस नाम लोगों के बीच काफी प्रचलित है।

अगर हम वाराणसी के इतिहास की बात करें तो वाराणसी यानि काशी प्राचीन काल में न केवल एक धार्मिक केंद्र था बल्कि एक औद्योगिक केंद्र भी था, जो अपने मालवण, रेशमी कपड़े, इत्र, हाथी दांत और मूर्ति निर्माण के लिए जाना जाता था। 600 ईसा पूर्व यानि महात्मा बुद्ध के समय में काशी धार्मिक, शैक्षणिक और कलात्मक गतिविधियों का केंद्र था। 

चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी कही है जो उस समय इस शहर में आए थे। इतिहास के पन्नों को खंगालेंगे तो आपको मालूम चलेगा कि 1194 ई. के बाद जब मुस्लिम आक्रमणकारी यहाँ आए तो उन्होंने धीरे-धीरे काशी को नष्ट करना शुरू कर दिया। 

हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए उस समय के मुस्लिम शासकों ने यहाँ के पवित्र हिंदू मंदिरों को भी नष्ट कर दिया था। साथियों ये वो समय था जब काशी में सभी विद्वान क्रूर मुस्लिम आक्रमणकारियों के डर से दूसरी जगहों पर भागने लगे थे। हालांकि 16वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर ने इस शहर की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने में थोड़ी मदद की थी, लेकिन जब उसके वंशज औरंगजेब सत्ता में आए तो उन्होंने फिर से हिंदू मंदिरों पर हमला करना शुरू कर दिया। 

9 अप्रैल 1679 को औरंगजेब ने न केवल हिंदू मंदिरों बल्कि उनके स्कूलों को भी ध्वस्त करने का आदेश दिया। औरंगजेब के आदेश को काशी मथुरा के मंदिरों से शुरू करके उसकी सल्तनत के तहत आने वाले सभी 21 राज्यों में लागू किया गया।



ओरंगजेब के इस आदेश का जिक्र उसके दरबारी लेखक साकी मुस्तयद खां ने अपनी किताब मुसाहिरे आलमगीरी में किया है. 1965 में प्रकाशित वाराणसी गजेटियर के पेज नंबर 57 पर इस आदेश का जिक्र है. इतिहासकारों का मानना ​​है कि ओरंगजेब के इस आदेश के बाद सोमनाथ, काशी विश्वनाथ, केशव देव समेत सैकड़ों मंदिरों को घेर लिया गया था. 

हालांकि 17वीं सदी में जब मराठों का शासन आया तो काशी की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का सिलसिला शुरू हुआ. और ब्रिटिश हुकूमत के दौरान यानी 18वीं सदी तक ये शहर धार्मिक केंद्र के साथ-साथ व्यापारिक केंद्र भी बन गया. और फिर आया साल 1910, जब ब्रिटिश हुकूमत के दौरान वाराणसी को नया भारतीय राज्य बनाया गया, जो 1949 तक रहा. और इसके बाद 15 अक्टूबर 1949 को बनारस को आधिकारिक तौर पर उत्तर प्रदेश का हिस्सा बना दिया गया था।

 


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