Jwala Devi Temple and its history

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ज्वाला देवी की ज्वाला का रहस्य, धर्म या विज्ञान, मां भगवती के 51 शक्ति पीठों में से एक ज्वालामुखी मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर ज्योतिावली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी।

यहां माता ज्वाला के रूप में विराजमान हैं और भगवान शिव यहां उन्मत भैरों के रूप में स्थित हैं। इस मंदिर का चमत्कार यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा की जाती है। 

आज तक इसका कोई रहस्य नहीं जान पाया है कि आखिर यह ज्वाला यहां से कैसे निकल रही है। कई भू-विज्ञानी ने कई कीमती खुदाई करने के बाद भी यह पता नहीं लगा सके कि यह प्राकृतिक गैस कहां से निकल रही है।
साथ ही आज तक कोई भी इस ज्वाला को बुझा भी नहीं पाया है। आइए जानते हैं ज्वाला देवी की ज्वाला का रहस्य क्या है

इसके पीछे धार्मिक या वैज्ञानिक मान्यताएं क्या हैं ?

ज्वाला देवी मंदिर में बिना तेल और बाती के 9 ज्वालाएँ जल रही हैं, जो माता के 9 स्वरूपों का प्रतीक है। मंदिर की सबसे बड़ी ज्वाला जो जल रही है, वह ज्वाला माता है और अन्य 8 ज्वालाओं के रूप में माँ अन्नपूर्णा, माँ विद्या वासिनी, माँ चंडी देवी, माँ महालक्ष्मी, माँ हिंगलाज माता, देवी माँ सरस्वती, माँ अम्बिका देवी एवं माँ अंजी देवी हैं। 

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ब्रिटिश साम्राज्य में की गई ऐसी कोशिश, माँ ज्वाला देवी के मंदिर का निर्माण सबसे पहले राजा भूमि चंद ने करवाया था। माँ ज्वाला देवी का मंदिर राजा भूमि चंद द्वारा बनाया गया था । इसके बाद 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। 

ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान मंदिर की ज्वाला जानने के लिए जमीन के नीचे दबी ऊर्जा का पता लगाने के लिए काफी कोशिश की गई लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा। भूगर्भ वैज्ञानिक भी पहुंचे थे मंदिर।
आज़ादी के बाद भी कई भूगर्भ वैज्ञानिक भी तंबू गड़कर बैठ ज्वाला की जड़ तक पता लगाने के लिए बैठ गए थे लेकिन उनको भी कोई जानकारी नहीं मिली। ये बातें सिद्ध करती हैं कि ये चमत्कारिक ज्वाला है। मंदिर से निकलती ज्वाला का रहस्य आज भी बना हुआ है।

मंदिर को लेकर एक प्राचीन कथा है। ज्वाला देवी की ज्वाला से संबंधित एक प्राचीन कथा भी है। तथा के अनुसार, भक्त गोरखनाथ माँ ज्वाला देवी के बहुत बड़े भक्त थे और हमेशा भक्ति में लीन रहते थे।
एक बार भूख लगने पर गोरखनाथ ने मां से कहा कि मां आप पानी गर्म करके रखें तब तक मैं मिक्सा मान कर आता हूं। 

जब गोरखनाथ मिक्सा लेने गए तो वापस लौटकर नहीं आया। मान्यता है कि यह वही ज्वाला है जो मां ने जलाई थी और कुछ ही दूरी पर बने कुंड के पानी से भाप निकलती प्रतीत होती है। 
इस कुंड को गोरखनाथ की डिब्बी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कलयुग के अंत में गोरखनाथ मंदिर वापस लौटकर आएंगे और तब तक ज्वाला जलती रहेगी। अकबर ने ज्वाला बुझाने की कोशिश की थी।

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बादशाह अकबर ने मंदिर की ज्वाला के बारे में सुना तो उसने अपनी सेना बुलाकर इस ज्वाला को बुझाने के लिए कई बार कोशिश की लेकिन कोई भी मंदिर की ज्वालाओं को बुझा नहीं पाया। फिर उसने नहर तक की खुदाई करवाने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा। नहर मंदिर की बाईं ओर देखने को मिल जाएगी। 

बाद में वह मां के इस चमत्कार को देखकर नतमस्तक हो गया और स्वर्ण के छत्र चढ़ाने पहुंचा लेकिन माता ने उसे स्वीकार नहीं किया और वह गिरकर किसी अन्य धातु में बदल गया। यह धातु कौन सी है इसका आज तक किसी को पता नहीं चला। हर इच्छा होती है मां के दरबार में पूरी। ज्वाला माता के मंदिर को लेकर ध्यानुभगत की कहानी भी प्रसिद्ध है।
 
तथा के अनुसार ध्यानुभगत ने अपनी भक्ति सिद्ध करने के लिए अपना शिष्य मां को चढ़ा दिया था। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से मां से जो भी मांगता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है।
कोई भी मां के दरबार से खाली नहीं जाता।

विश्वास : ( Faith )

कई तीर्थयात्री इस पवित्र स्थल पर अपनी प्रार्थनाएँ करने के लिए ज्वाला देवी मंदिर का दौरा करते हैं। आशीर्वाद प्राप्त करने वाले लोग तब सोने और चांदी की भेंट चढ़ाते हैं जब उनकी प्रार्थनाएँ पूरी होती हैं।

मंदिर का समय : ( Temple Timings  )

गर्मी के मौसम में मंदिर सुबह 5:00 बजे खुलता है और शाम 10:00 बजे बंद होता है। सर्दी के मौसम में मंदिर सुबह 6:00 बजे खुलता है और शाम 9:00 बजे बंद होता है।

आरती :

ज्वाला देवी मंदिर में 5 आरतियाँ की जाती हैं।
1. मंगल आरती।
2. पंचोपचार आरती : यह एक बाद की आरती है।
3. भोग आरती।
4. संध्या आरती।
5. शयन आरती।
 

 

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