Nilkanth Mahadev Mandir History

।। ओम नमः शिवाय।।

भगवान भोलेनाथ इस संसार की सभी परेशानियों से मुक्त करते है और हमें सुख और मोक्ष भी प्रदान करते है।

श्री भोलेनाथ इस ब्रह्मांड के हर कण में निराकार रूप में उपस्थित हैं। देवों के देव महादेव

अपने सभी भक्तों की इच्छाओं को पूरा करते हैं, चाहे वह देवता हों या दानव।


एक पौराणिक कथा के अनुसार आदिकाल में एक समय जब देवताओ और असुरो ने मिलकर समुंद्र मंथन किया,तो उस मंथन से कई तरह के बहमूल्य रत्न एवम वस्तुएँ निकली। जिसको दोनों को बाटा गया।

मगर इन बहुमूल्य वस्तु में एक भयानक हलाहल विष भी था। जिसके प्रकट होने से इसका विशेला असर पूरी सृष्टि मैं फेलने लगा। 


इसके प्रकट होने के बाद इसका विषैला प्रभाव पूरी सृष्टि में फैलने लगा। ऐसा भयानक दृश्य देखकर सभी डर गए। और इस सृष्टि को बचाने के लिए जगत के पिता भगवान भोलेनाथ ने उस भयंकर हलाहल विष को पी लिया।

उस समय महादेव के पीछे माता आदिशक्ति भी थीं, जिन्होंने महादेव के गले पर हाथ रखकर उस विष को भोलेनाथ के गले में ही रोक दिया। जिससे वह विष न तो गले से बाहर आ पाया और न ही गले के नीचे शरीर में जा सका।

इस प्रकार आदिदेव महादेव शिव और माता आदिशक्ति ने मिलकर इस सृष्टि को अपनी संतान के रूप में बचाया। विष के प्रभाव से भोलेनाथ का गला नीला पड़ गया। तभी से उन्हें नीलकंठ महादेव के रूप में पूजा जाता है। जो देवभूमि उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के मणिकूट पर्वत पर, ऋषिकेश के पास, मधुमती और पंकजा नदियों के संगम पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर में साक्षात उपस्थित हैं।

यह नीलकंठ महादेव मंदिर वह स्थान है जहां महादेव ने अपने गले को ठंडा करने के लिए हजारों वर्षों तक समाधि में ध्यान लगाया था। मंदिर के गर्भगृह में वही स्थान है जहां महादेव ने बरगद के पेड़ के नीचे ध्यान लगाया था। माना जाता है कि पंकजा और मधुमती नदियों के साथ वही बरगद का पेड़ भी मंदिर में आज भी मौजूद है, जिसने महादेव की उस समाधि का साक्षी बना।

जब महादेव यहां ध्यान में थे, तब माता पार्वती भी भोलेनाथ के ध्यान पूरा होने का इंतजार वर्षों तक करती रहीं। हजारों वर्षों बाद, कैलाश पर्वत लौटने से पहले, माता पार्वती के अनुरोध पर भगवान भोलेनाथ ने अपने गले के आकार का शिवलिंग इस स्थान पर स्थापित किया, जिसमें आज भी एक नीला निशान है।

मंदिर के सुंदर रंग-बिरंगे शिखर पर महादेव एवं देवी पार्वती तथा अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।

तब से यह स्थान विश्व प्रसिद्ध तीर्थ बन गया। दूर-दूर से भक्त कांवड़ चढ़ाकर इस मंदिर में आते हैं और महादेव का जलाभिषेक करते हैं। 

सावन सोमवार को नीलकंठ महादेव के दर्शन से मोक्ष प्राप्त होता है। गर्भगृह के बाहर नंदी जी भी अपने प्रभु भोलेनाथ की सेवा में विराजमान हैं।


मंदिर के पास ही प्राचीन जिल्मिल गुफा भी स्थित है। यह गुफा बाबा गोरखनाथ को समर्पित हैजो भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त थे। यहाँ आज भी साधु-संत तपस्या करते दिखाई देते हैं। प्रति दिन मंदिर सुबह 5:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक और शाम 4:00 बजे से रात 9:00 बजे तक खुला रहता है। 

मंदिर के रास्ते में बहुत से सुंदर प्राकृतिक दृश्य मन को मोह लेते हैं एवं मंदिर के बाहर स्थित बहुत सी भोग प्रसाद की दुकानों से आप महादेव को अर्पित करने के लिए फूल, फल, अभिषेक की वस्तुएं आदि ले सकते हैं।

इसके साथ ही आप ऋषिकेश स्थित राम झूला, लक्ष्मण झूला, श्री त्र्यम्बकेश्वर मंदिर आदि पवित्र स्थलों के भी दर्शन कर सकते हैं।

नीलकंठ महादेव मंदिर कैसे पहुंचें:

नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश बस टर्मिनल से 32 किमी (32Km) दूर है। यहां पहुंचने के लिए प्राइवेट और शेयर टैक्सी (private and shared taxi) की मदद ले सकते हैं। 

इसके अलावा बस(Bus) के द्वारा भी पहुंच सकते हैं। आपको राम झूला से कई टैक्सी और स्थानीय बसें मिलेंगी जो आपको सीधे मंदिर तक ले जाती हैं।


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