बागेश्वर में बहने वाली मुख्य नदियाँ हैं - पिंडर, सरयू/सरजू, गोमती और पुंगर, जो सभी सरजू की सहायक नदियाँ हैं। बागेश्वर अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ग्लेशियरों, नदियों और मंदिरों के लिए जाना जाता है। यह बागेश्वर जिला का प्रशासनिक मुख्यालय भी है।
आज हम बागेश्वर के बारे में बात करेंगे, जो गोमती और सरियूँ नदी के संगम पर स्थित है। बागेश्वर उत्तराखंड का एक जिला है, जो समुद्र तल से 1004 मीटर की ऊँचाई पर है। बागेश्वर एक पहाड़ी क्षेत्र है, जिसकी जनसंख्या 10 लाख है, और इसमें कांडा-तहसील की जनसंख्या है। बागेश्वर उत्तराखंड का एक जिला है, जिसकी जनसंख्या 10 लाख है, और इसमें कांडा-तहसील की जनसंख्या है। आज हम प्राचीन कहानियों से लेकर आधुनिक इतिहास के बारे में बात करेंगे।
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव इस स्थान पर बाघ के रूप में विराजे थे। इसी कारण से इस क्षेत्र का नाम व्यागेश्वर रखा गया। लेकिन 1450 में, चंद वंश के राजा लक्ष्मी चंद ने यहाँ बागनाथ मंदिर की स्थापना की। और बाद में, बागनाथ मंदिर के नाम पर, इसे व्यागेश्वर से भागेश्वर में बदल दिया गया। इसी तरह, प्राचीन समय से, यह भगवान शिव और माता पार्वती की पवित्र भूमि होने के कारण, आज भी इसे पवित्र भूमि माना जाता है। और पुराणों के अनुसार, बागीश्वर जिला को देवो के देवता भी कहा गया है।
यदि हम आधुनिक इतिहास की बात करें, तो यह क्षेत्र कभी कुछ राजाओं का निवास स्थान था। बाद में, कट्यूरी राजाओं का भी यहाँ आना हुआ। पहले बागेश्वर जिला अल्मोड़ा का हिस्सा हुआ करता था। जिसे बाद में 15 सितंबर 1997 को अल्मोड़ा से अलग किया गया। सन 1800 में, बागेश्वर में 8 से 10 घरों की बस्तियां हुआ करती थी। सन 1860 में, 200 दुकानों और कुछ बस्तियों का विकास होना शुरू हुआ।
अगर हम 1860 की जनसंख्या का वर्णन करें, तो उस समय बागेश्वर की जनसंख्या 500 लोगों की आबादी थी। बाद में, गोमती और सरयू नदी के कारण, 1913 में यहां एक झूलता पुल बनाया गया। जिसमें आज भी लोगों का पुल में आवागमन होता हैं। 1970 में, इसके बगल में एक मोटर पुल बनाया गया, जिसमें भारी वाहन इस पुल से गुजरते हैं।
सन 1904 में, ब्रिटिश उपनिवेशियों ने तनकपुर रेलवे लाइन को जोड़ना चाहा,लेकिन उनके साक्ष आज भी अधूरे मिलते अधूरे मिलते हैं। सन 1960 में, इंदिरा गांधी ने भी बागेश्वर का दौरा किया, लेकिन टनकपुर से बागेश्वर तक की रेलवे लाइन सर्वेक्षण होने के बावजूद भी रेलवे लाइन का प्रोजेक्ट अस्थिर ही रहा। और सरकारी दस्तावेजों में सिमट के रहा गया।
एक तरफ, आप बागेश्वर की सरयू नदी को देखते हैं। दूसरी ओर, उत्तराखंड के प्रदर्शनकारियों ने कुलीबेगार नाम की कलंक पूर्ण प्रथा को समाप्त करने के लिए यही पर फैसला किया। सन 1929 में, गांधी खुद बागेश्वर पहुंचे। यदि हम रिकॉर्ड के अनुसार चलें, तो बागेश्वर में पहला डाक घर 1919 में खोला गया था।
और सन 1926 में पहला सरकारी स्कूल भी बागेश्वर में खोला गया । और यहां तात्कालिक मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा के द्वारा सन 1974 में यहाँ डिग्री कॉलेज की स्थापना करी।
यह जानकर आप को हैरान होंगे कि 1951 में, बाघेश्वर में पहली बार बिजली आई थी।
हालांकि बाघेश्वर में कई मेलों का आयोजन होता है,लेकिन उत्त्यारानी मेला यहाँ का विशेष और सांस्कृतिक मेला है,जो मकर संक्रांति के दौरान होता है।
यदि हम बागेश्वर के तीर्थ स्थल की बात करें, तो इस स्थान का सबसे पुराना मंदिर बागनाथ मंदिर हैं।
अन्य मंदिरों के साथ, आप बागेश्वर के अंदर बैजनाथ मंदिर, कौशानी, पिंडारी ग्लेशियर, कांडा , कापकोट आदि का भी दर्शन कर सकते हैं।
अक्सर लोग पूछते हैं कि यहां भगवान शिव ने बाघ का रूप क्यों धारण किया?
भगवान शिव को यहां बाघ का रूप धारण करने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
तो, मैं आपको बताता हूँ कि यहाँ मार्कंडेय ऋषि तप कर रहे थे। वे एक ऐसी जगह तप कर रहे थे जहाँ से सरयू नदी आगे नहीं बढ़ पा रही थी। तभी , महर्षि वसिष्ठ ने शिव जी से इस संकट को दूर करने के लिए निवेदन किया। क्युकी सरयू के अचानक न बढ़ने के कारण, आगे बाढ़ आने का खतरा था।
तब भगवन शिव ने मारकंडे ऋषि का ध्यान भंध करने के लिए बाघ का रूप धारण किया ,और माता पार्वती ने गाय का रूप धारण किया। जब बाघ ने गाय को खाने की दहाड़ मारी तो गाय जोड़ जोड से लमहाने लगी।
तब गाय के लमहाने से मारकंडे ऋषि का ध्यान टुटा और वह गाय की रक्षा के लिए चले गए।
जिस वजह से फिर सरयू नदी आगे बढ़ सकी। इसलिए प्रकार भगवन शिव को यहाँ बाघ का रूप धारण करना पडा।
बागेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे :
सड़क मार्ग से: बागेश्वर उत्तराखंड के प्रमुख शहरों और कस्बों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। आप या तो बागेश्वर तक गाड़ी से जा सकते हैं या बस से भी जा सकते हैं। दिल्ली, देहरादून और हल्द्वानी जैसे शहरों से बागेश्वर के लिए नियमित बस सेवाएँ चलती हैं।
सड़क यात्रा से हिमालय के पहाड़ों और हरी-भरी घाटियों दृश्य दिखाई देते हैं।बागेश्वर पहुँचने के बाद, आप इसके धार्मिक स्थलों, प्राकृतिक सुंदरता और बैजनाथ मंदिर, कांडा मंदिर और बागनाथ मंदिर जैसे आस-पास के आकर्षणों को देख सकते हैं।
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